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माँ गंगा

हिम का भेदन कर के तुम आई हो ,
अपने साथ कल - कल की ध्वनि लाई हो ।

भूधर के उर , कंठ को सुख देकर आई हो ,
मृत तरुवर को जीवन सुख देकर आई हो ।

सखियाँ सुधा की तुम पर कितनी मिल पाई हैं ,
वृक्ष , पादप , जीव- जंतु तुम से तुम ही तो प्राण लाई हो ।

अमृत औषध का पद धोकर तुम साथ लाई हो ,
तभी तो बोतल बन्द डिब्बों में तुम बिक पाई हो ।

तुम काँटों में जीवन भर देती हो ,
हर प्राणी को सुधा से तृप्त कर देती हो ।

तुझ में मानव कूड़ा - करकट , मल - मूत्र डाल देता है ,
और उसी पानी को फिल्टल कर के पीता है ।।

लेकिन तुम भी कब तक खुद विष पीकर सुधा पिलाओगी ,
भौतिक जग में कब तक विष में अमृत मिलाओगी ।।

माणिक्य बहुगुना / चंद्र प्रकाश / पंकज
सम्पर्क सूत्र - +९१७५०३७७२८७१

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