अच्छे मित्र शक्ल से या पैसे से नहीं तोले जाते हैं ....
वो कोई बाज़ार नहीं जहाँ अच्छे मित्र ख़रीदे जाते हैं ,
ये तो रब की दुआ है हम पर ऐ दोस्त ...
जो आप जैसे दोस्त बन जाते हैं ।।
माणिक्य बहुगुना
इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते । राह जोहते दिन में , रातों को यादों में जगते । तुम्हारे पापा से जो बात की, उत्तर में वो भी ना बोले । तुम्हारी मम्मी जी तो मुझको निठल्ला , नाकारा क्या - क्या कहते । जग वाले तो हमको यों न मिलने देगे मुझको नीच तुमको उच्च जो कहते । सब की नज़रों में जीरो हूं प्रेयसी , तुम ही जो हीरो कहते । हर पल लबों पर नाम तुम्हारा , ज़्यादातर पक्ति लिखते । मैंने तो निर्णय किया है प्रेयसी , हम प्यार तुम्ही से करते । ये खत लिखा है तुमको रोया हूं लिखते - लिखते । इन रस्में-वफा के चलते , हम एक नहीं हो सकते ।
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