लोग चांद तक पहुंच गये .....
मैं बचपन के खिलौनों से खेलता हूं....
लोग इतने चालाक हो गये कि मत पूछ चन्दर ....
मैं अभी भी हालातों के उखड़े चमन से खेलता हूँ ।।
इन रिश्तों की कद्र नहीं जानते ए चन्दर ...
कुछ लोग तभी हर दिल से खेलते हैं ....
वो बेवफ़ाई करते हैं हर बार इस दिल से ...
मैं हर बार उसी दिल से खेलता हूँ ।।
मैं हर बस्ती हर महफ़िल ....
यूँ पागल सा बन जाता हूँ ....
वो मेरी कमजोरी का फ़ायदा उठाते हैं ...
मैं हर बार इस मंजर से खेलता हूँ ।।
आपके ब्लाग की हर कबिता पढी। अच्छा लगा। आशा है आप खूब लिखें।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप लोगों का मार्ग दर्शन हो इसी इच्छा से लिखता हूँ , और काव्य के लिए तो मैं अभी अप्रौढा ही हूँ केवल शिशु मात्र लेकिन आपका मार्गदर्शन मिलना आवश्यक है जिस से में कुछ सामर्थ्य वान हूँगा ऐसा मेरा मानना है।।
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